लेखनी प्रतियोगिता -08-Apr-2023 नारी सबसे प्रलयंकारी
दैत्यराज हिरण्यकश्यप के कुल में निकुंभ नामक दैत्य था । उसके दो पुत्र हुए । एक सुंद और दूसरा उपसुंद । सुंद बड़ा था और उपसुंद छोटा । दोनों भ्राताओं में बहुत घनिष्ठ प्रेम था । दोनों लगभग हर प्रकार से समान थे । दोनों ही बलवान , वीर और पर्वताकार थे । दोनों के प्राण एक दूसरे में बसते थे । एक के बिना दूसरा एक मिनट नहीं जी सकता था । दोनों साथ साथ रहते थे , साथ साथ खाते पीते थे , साथ ही सोते भी थे । उनका सब कुछ एक जैसा था ।
अमर होने की इच्छा से उन्होंने ब्रह्मा जी की तपस्या प्रारंभ की । वर्षों तक दोनों भाई हाथ ऊपर कर एक पैर पर खड़े होकर गर्मी, सर्दी, बरसात सहते हुए निराहार रहकर तपस्या करते रहे । बाद में केवल पैर के अंगूठे के सहारे खड़े होकर तपस्या करने लगे । इतनी घोर तपस्या से ब्रह्मा जी प्रसन्न हो गये और उन्होंने सुंद और उपसुंद को दर्शन दे दिए । उनकी तपस्या के फल के लिए ब्रह्मा जी ने कहा
"वत्स , तुम्हरी इस कठोर तपस्या से मैं बहुत प्रसन्न हूं । मनचाहा वर मांगो वत्स" ।
ब्रह्मवाणी सुनकर दोनों भाइयों ने आंखें खोली और उन्हें साष्टांग प्रणाम किया । तब दोनों भाई बोले "भगवन , यदि आप हमारी तपस्या से प्रसन्न हैं तो हमें यह आशीर्वाद दीजिए कि हम दोनों भाई त्रैलोक्य विजयी हो जायें और अमरता को प्राप्त करें" ।
"मैं तुम्हें त्रैलोक्य का राज्य तो दे सकता हूं वत्स । जाओ, तुम्हें वर दिया कि तुम दोनों भाई त्रैलोक्य पर राज्य करोगे । पर मैं तुम्हें अमरता का वरदान नहीं दे सकता हूं क्योंकि यह शरीर नश्वर है जिसे अमर नहीं किया जा सकता है । यह ब्रह्मांड के नियमों के विपरीत है । अत: इसके अतिरिक्त अन्य कोई वर मांग लो" । ब्रह्मा जी ने कहा
"अगर आप अमरता का वरदान नहीं दे सकते हैं तो हमें यह वरदान दीजिए कि हमें कोई भी अन्य व्यक्ति मार न सके"
"मैं तुम्हें यह वरदान देता हूं कि तुम दोनों आपस में ही लड़कर मर सकते हो । अन्य कोई भी तुम्हें मार नहीं सकता है" । ब्रह्मा जी वरदान देकर ब्रह्म लोक में चले गये और सुंद तथा उपसुंद दोनों भाई प्रसन्न होकर पृथ्वी को विजित करने के लिए निकल पड़े । उन्हें इस बात का गर्व हो गया था कि वे अमर हो गये हैं क्योंकि वे आपस में तो कभी लड़ेंगे नहीं । फिर उन्हें कौन मार सकता है ?
दोनों भाई अतुल पराक्रमी थे । पृथ्वी को विजित करने में उन्हें ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी । इसके बाद वे पाताल लोक गये और उसे भी विजित कर लिया ।
अब स्वर्ग लोक बाकी रह गया था । दोनों भाइयों ने एक विशाल सेना तैयार की और स्वर्ग लोक पर हमला कर दिया । दोनों दैत्यराजों की अतुलित शक्ति और अनंत सेना देखकर सभी देवता स्वर्ग लोक से भाग गये और ब्रह्मा जी की शरण में पहुंचे । कहने लगे "भगवन, दोनों दैत्य बहुत ताकतवर हैं । उन्हें युद्ध में पराजित करना असंभव जान पड़ता है । उनके अत्याचारों से संत , विद्वान मनुष्य और स्त्रियां बहुत दुखी हैं इसलिए इन दोनों आतताइयों को मारने का तरीका बताइये जिससे हम सब लोग अपना हड़पा हुआ राज्य वापिस प्राप्त कर सकें और साधु, पंडित और नारी जाति चैन से जी सके" ।
ब्रह्मा जी एक घड़ी तक सोचते रहे । फिर उन्होंने विश्वकर्मा जी का आह्वान किया । विश्वकर्मा जी तुरंत उपस्थित हो गये और हाथ जोड़कर बोले "मेरे लिए क्या आज्ञा है, भगवन" ?
ब्रह्मा जी बोले "एक ऐसी अपूर्व सुंदर स्त्री बनाओ जो पहले न कभी देखी हो, न सुनी हो । जिसके दर्शन मात्र से पुरुष कामान्ध हो जाये और अपना सब विवेक भूल कर उस स्त्री के प्रेम में पागल हो जाये" ।
"ऐसा ही होगा भगवन । आप देखते जाइये । मैं ऐसी सुंदर स्त्री की रचना करूंगा जिसे देखकर आप भी दंग रह जायेंगे" । विश्वकर्मा जी ने कहा और अपने काम में लीन हो गए ।
संसार में जो पदार्थ सर्वोत्तम हैं उनका अंश लेकर उन्होंने एक ऐसी सुंदर स्त्री की रचना की जो अपने रूप सौन्दर्य में अनुपम और अद्वितीय थी । उसकी कांति के समक्ष सूर्य और चंद्र की कांति भी फीकी लग रही थी । उसके बदन का एक तिल के बराबर भी भाग ऐसा नहीं था जो विशेष कांति युक्त न हो । इसलिए ब्रह्मा जी ने उसका नाम तिलोत्तमा रख दिया ।
तिलोत्तमा ने ब्रह्मा जी को प्रणाम किया और कहा "मुझे किस प्रयोजन से बनाया गया है भगवन और मेरे लिये क्या आदेश है" ?
ब्रह्मा जी ने कहा "हे त्रैलोक्य सुंदरी, त्रैलोक्य विजयी दैत्यराज सुंद और उपसुंद दोनों भाइयों के अत्याचार से पूरा त्रैलोक्य विचलित हो रहा है । उनकी शक्ति अपरिमित है । वे युद्ध में अजेय हैं । उन्हें केवल तुम्हारा सौन्दर्य ही परास्त कर सकता है , अन्य कोई नहीं । अत: सुमंगले, जाओ और दोनों भाइयों को अपनी ओर इस प्रकार आकर्षित करो कि वे दोनों भाई तुम्हें प्राप्त करने के लिए उन्मत्त हो जायें और आपस में लड़कर मर जायें" ।
"ऐसा ही होगा प्रजापति" । यह कहकर तिलोत्तमा अपने लक्ष्य की ओर चल दी ।
एक सुदर वन में दोनों भाई विहार कर रहे थे और भांति भांति की क्रीड़ाऐं कर रहे थे । उन दोनों के समक्ष तिलोत्तमा आकाश मार्ग से आई और दोनों से बेखबर होने का नाटक करते हुए विभिन्न मुद्राओं में नृत्य करने लगी । उस अद्भुत सुंदरी को देखकर सुंद कामावेग में विह्वल होकर उसकी ओर दौड़ा । तिलोत्तमा उससे बचने का ढोंग करते हुए उपसुंद के समक्ष उपस्थित होकर गिड़गिड़ाने लगी "मेरी रक्षा करो नाथ ! मेरी रक्षा करो । मैं आपके शरणागत हूं नाथ, मेरी रक्षा करो" ।
उसके सौन्दर्य पर उपसुंद भी मोहित हो गया था । सुंद से परेशान होकर यह सुंदरी उससे रक्षा की गुहार लगा रही है यह सोचकर "यही अवसर है जब मुझे इसे बचाना चाहिए" उसने तिलोत्तमा से कहा "डरो नहीं कामिनी । जब तक यह उपसुंद नामक पराक्रमी जीवित है तब तक तुम्हें किसी से डरने की आवश्यकता नहीं है । मेरे बड़े भ्राता सुंद से भी नहीं । अब आप निष्फिक्र होकर मुझे प्रणय दान दें देवि" । ऐसा कहकर उपसुंद ने तिलोत्तमा का कोमल हाथ थाम लिया । यह देखकर सुंद जोर से चीखकर बोला
"ये क्या कर रहे हो उपसुंद ? यह स्त्री मेरी भावी पत्नी है और तुम्हारी होने वाली भाभी । भाभी मां के समान होती है अत: तुम्हें अपनी भाभी से प्रणय निवेदन करते हुए लाज नहीं आती है क्या" ?
"भाभी ! कैसी भाभी ? किसकी भाभी ? ये तो मेरी होने वाली पत्नी है और आपके अनुज की होने वाली वधू । अनुज वधू पुत्र वधू सदृश होती है और पुत्र वधू का दर्जा पुत्री जैसा होता है । अत: आपको ऐसा मलिन विचार त्याग देना चाहिए भ्राता श्री" । उपसुंद ने प्रत्युत्तर दिया ।
"अरे कायर ! तू मेरे पराक्रम को जानता नहीं है इसलिए तू ऐसी बात कह रहा है । आज तुझे मैं अपना पराक्रम दिखाता हूं" ऐसा कहकर सुंद ने अपनी भारी भरकम गदा हाथ में ले ली ।
उपसुंद ने देखा कि सुंद लड़ने की फिराक में है तो उसने भी अपनी भारी भरकम गदा उठा ली और दोनों योद्धा मैदान में आ डटे । अब तिलोत्तमा के पास उन दोनों के युद्ध को देखने के अतिरिक्त और कोई कार्य शेष नहीं बचा था । वह कल्पवृक्ष के नीचे खड़ी होकर उनका युद्ध देखने लगी ।
दोनों गदाऐं भयंकर आवाज करते हुए आकाश में टकराईं । उन गदाओं के टकराने से इतनी बिजली उत्पन्न हुई कि उससे सभी की आंखें चौंधिया गईं । दोनों भाई ऐसे युद्ध करने लगे जैसे हिमालय और विन्ध्याचल पर्वत आपस में टकरा रहे हों । भयानक शोर से त्रैलोक्य गूंज उठा । कई दिनों तक युद्ध चलता रहा । तिलोत्तमा मंत्र मुग्ध होकर वह युद्ध देखने लगी । आखिर दोनों भाई सुंद और उपसुंद लड़ते लड़ते मारे गये । इस तरह त्रैलोक्य सुंदरी तिलोत्तमा ने अपना कार्य पूरा कर दिया और वह ब्रह्मा जी के पास चली गई । ब्रह्मा जी ने उसके कार्य की भूरि भूरि प्रशंसा की और उसे मनचाहा वरदान दे दिया । इसके बाद तिलोत्तमा स्वर्ग लोक में चली गई ।
इस प्रकार एक नारी के सौन्दर्य ने दो महान दैत्यराजों जो एक दूसरे के लिए जीते मरते थे में पहले फूट डाल दी और फिर उन्हें समाप्त कर दिया । इसीलिए तो कहते हैं कि नारी सबसे प्रलयंकारी होती है । इसके सौन्दर्य की मार से कौन बच सका है ?
श्री हरि
8.4.2024
KALPANA SINHA
03-Jul-2023 01:55 PM
very nice
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madhura
11-Apr-2023 04:03 PM
nice
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Hari Shanker Goyal "Hari"
11-Apr-2023 10:19 PM
🙏🙏
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shahil khan
09-Apr-2023 11:03 PM
nice
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Hari Shanker Goyal "Hari"
11-Apr-2023 10:19 PM
🙏🙏
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